كتب الشاعر نجيب روفا سفري للمحيط العربي قصيدة بعنوان كم صار له ؟

 كم صارَ لهُ 

زهرُ الياسمين...؟!

يبحثُ عن... 

عطرِهِ الأصيل...!

أنتِ عطرُهُ.. 

الأوَّلُ والآخِرُ..

وهذا العطرُ.. 

الذي فيهِ بديل...!

كم فتَّش عنكِ...

في كُلِّ مكان...!

في الجبالِ ...!

في التلالِ...!

في الوديان...!

وسألَ عنكِ...

أشجارَ السنديان...!

والسَّروِ والشربين...!

وكم تسلقت أحلامُهُ...

أشجارَ النخيل...!  

كي يشُمٌَ وجهَكِ....

قربَ شمسِ الأصيل...!

وها هوَ الياسمين...!

في كُلِّ البساتين..!

في كلِّ... 

مكانٍ من الكونِ...

ساهٍ حزين...!

يبحثُ عنكِ ...!

علَّه يتذكرُ عطرَهُ...

الذي هربَ إليكِ...!

في ذلكَ الليلِ الطويل...!

وترك الياسمينَ... 

يبكي رائحةً...

هجرَته مِن سنين...!


أنا والياسمينُ صنوانِ...

عاشقانِ الوجهَ الجميل...!

أنا والياسمينُ...

لا ننسى حُبًَنا ولا نميل...!

أنا والياسمينُ...

مازلنا تنتظِرُ النسيمَ العليل...!

علَّهُ يأتي وإياهُ عُطرُكِ...

ولو قليلا قليلاً...

سنكتفي بالقليل...!

أنا والياسمينُ صِرنا...

أغنيةً للمُغرمين...!

يغنيها الليلُ كلما...

أبكاهُ زهرٌ ضاعَ عطرُهُ...

ولم يجد له السبيل...!

كم صارَ لهُ...

عطرُ الياسمين...؟َ

دَوَّاراً مِنَ... 

الشمالِ إلى اليمين...!

أنا مثلُهُ سوفَ أبقى...

عنكِ أبحثُ..

عن رائحتي...

الآن وحتَّى دهرِ الداهرين...!

التلال عين سعادة

في2023

نجيب روفا سفري




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